महिला की साहसगाथा

सारांश

इस लेख द्वारा छात्र यह जानकारी प्राप्त कर सकते हैं कि महिलाएँ भी साहस प्रदर्शन में पुरुषों से कुछ कम नहीं हैं। बिछेंद्री पाल इस विचार का एक निदर्शन है। बिछेद्री पाल को एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला होने का गौरव प्राप्त है। किशनपाल सिंह और माँ हंसादेई नेगी के पाँच संतानों में वह तीसरी संतान थीं।अपने बड़े भाई से प्रेरित होकर उन्होंने पर्वतारोहण करना चाहा। इसलिए पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया। बिछेद्री को बचपन में रोज़ पाँच किलोमीटर पैदल चल कर स्कूल जाना पड़ता था। बाद में पर्वतारोहण-प्रशिक्षण के दौरान उनका कठोर परिश्रम बहुत काम आया। सिलाई का काम सीख कर सिलाई करके पढ़ाई का खर्च जुटाने लगीं। इस तरह उन्होंने संस्कृत में एम.ए तथा बी.एड तक की शिक्षा प्राप्त की। । पढ़ाई के साथ-साथ बिछेंद्री ने पहाड़ पर चढ़ने के अपने लक्ष्य को भी हमेशा अपने सामने रखा। इसी दौरान उन्होंने ने 'कालानाग' पर्वत की चढ़ाई की। सन् 1982 में उन्होंने 'गंगोत्री ग्लेशियर'(6672 मी) तथा 'रूड गेरो' (5819 मी) की चढ़ाई की जिससे उनमें आत्मविश्वास और बढ़ा।अगस्त 1983 में जब दिल्ली में हिमालय पर्वतारोहियों का सम्मेलन हुआ तब वे पहली बार तेनजिंग नोर्गे (एवरेस्ट पर चढ़ने वाले पहले पुरुष) तथा जुंके ताबी (एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली महिला) से मिलीं।


एवरेस्ट चढते समय उनके साथ पर्वतारोही अंग दोरजी भी थे।उस दिन कर्नल खुल्लर ने साउथ कोल तक की चढ़ाई के लिए तीन शिखर दलों के दो समूह बनाया था। वे सुबह चार बजे उठी, बर्फ पिघलाई और चाय बनाई। कुछ बिस्कुट और आधी चॉकलेट का हल्का नाश्ता करने के पश्चात् वे लगभग साढ़े पाँच बजे अपने तंबू से निकल पड़ी। सुबह 6:20 पर जब अंग दोरजी और वे साउथ कोल से बाहर निकले तो दिन ऊपर चढ़ आया था। हल्की-हल्की हवा चल रही थी और ठंड बहुत अधिक थी। उन्होने बगैर रस्सी के ही चढ़ाई की। बर्फ काटने के लिए फावड़े का इस्तेमाल किया।दो घंटे से कम समय में ही वे शिखर कैंप पर पहुँच गए। थोड़ी चाय पीने के बाद उन्होने पुनः चढ़ाई शुरू कर दी। ल्हाटू एक नायलॉन की रस्सी लाया था इसलिए अंग दोरजी और वे रस्सी के सहारे चढ़े, । उनके रेगुलेटर पर जैसे ही ल्हाटू ने ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई उन्हें कठिन चढ़ाई आसान लगने लगी।दक्षिणी शिखर पर तेज़ हवा के झोंके भुरभुरे बर्फ के कणों को चारों तरफ उड़ा रहे थे। 23 मई, 1984 के दिन दोपहर के 1 बज कर 7 मिनट पर वे एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। एवरेस्ट की चोटी पर इतनी जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति साथ-साथ खड़े हो सकें। चारों तरफ हज़ारों मीटर लंबी सीधी ढलान को देखते हुए उनके सामने मुख्य प्रश्न सुरक्षा का था। उन्होंने फावड़े से पहले बर्फ की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से स्थिर किया। इसके बाद वे अपने घुटनों के बल बैठी। बर्फ पर अपने माथे को लगाकर उन्होंने सागर माथे के ताज का चुंबन किया। थैले से हनुमान चालीसा और दुर्गा माँ का चित्र निकालकर लाल कपड़े में लपेटा और छोटी-सी पूजा करके उनको बर्फ में दबा दिया। कुछ देर बाद सोनम पुलजर पहुँचे और उन्होंने फोटो लिए। कर्नल खुल्लर ने उन्हें वॉकी-टॉकी में बधाई दी ।वापसी यात्रा 1 बज कर 55 मिनट पर आरंभ की। अंग दोरजी और वे साउथ कोल पर सायं पाँच बजे तक पहुँच गए। उन्हें पर्वतारोहण में श्रेष्ठता के लिए भारतीय पर्वतारोहण संघ का प्रतिष्ठित स्वर्ण-पदक तथा अन्य अनेक सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए गए। पद्मश्री और प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार की घोषणा की गई।

ಕನ್ನಡ ಸಾರಾಂಶ

ಈ ಲೇಖನದ ಮುಖಾಂತರ ಮಕ್ಕಳು ಈ ಮಾಹಿತಿಯನ್ನು ಪಡೆಯಬಹುದಾಗಿದೆ ಏನೆಂದರೆ ಮಹಿಳೆಯರೂ ಸಹ ಸಾಹಸ ಪ್ರದರ್ಶನದಲ್ಲಿ ಪುರುಷರಿಗಿಂತ ಏನು ಕಡಿಮೆ ಇಲ್ಲ. ಬಿಚೇಂದ್ರಿಪಾಲ್ ಅವರು ಇದಕ್ಕೆ ಪ್ರತ್ಯಕ್ಷ ಉದಾಹರಣೆಯಾಗಿದ್ದಾರೆ. ಬಿಚೇಂದ್ರಿಪಾಲರಿಗೆ ಎವರೆಸ್ಟ್ ಶಿಖರವನ್ನು ಏರಿದ ಮೊದಲ ಭಾರತೀಯ ಮಹಿಳೆ ಎಂಬ ಗೌರವವಿದೆ. ಕಿಶನಪಾಲಸಿಂಗ್ ಮತ್ತು ಹಂಸಾದೆಯಿ ನೇಗಿ ಅವರ ಐವರು ಮಕ್ಕಳಲ್ಲಿ ಇವರು ಮೂರನೆಯವರಾಗಿದ್ದಾರೆ ತನ್ನ ಅಣ್ಣನಿಂದ ಪ್ರೇರಣೆಗೊಂಡು ಅವರು ಪರ್ವತಾರೋಹಣ ವನ್ನು ಮಾಡಲು ಬಯಸಿದರು.ಪರ್ವತಾರೋಹಣದ ತರಬೇತಿಯನ್ನು ಪಡೆಯಲಾರಂಭಿಸಿದರು. ಬಾಲ್ಯದಲ್ಲಿ ಅವರು ಐದು ಕಿಲೋಮೀಟರ್ ನಡೆದು ಶಾಲೆಗೆ ಹೋಗುತ್ತಿದ್ದರು. ಪರ್ವತಾರೋಹಣ ತರಬೇತಿಯನ್ನು ಪಡೆಯುವಾಗ ಇದು ಅವರಿಗೆ ತುಂಬಾ ಅನುಕೂಲವಾಯಿತು. ಬಟ್ಟೆ ಹೊಲಿಯುವ ಮುಖಾಂತರವಾಗಿ ತಮ್ಮ ಓದಿನ ಖರ್ಚನ್ನು ನಿಭಾಯಿಸುತ್ತಿದ್ದರು. ಸಂಸ್ಕೃತದಲ್ಲಿ ಎಂ.ಎ.ಹಾಗೂ ಬಿ.ಇಡಿ. ಶಿಕ್ಷಣವನ್ನು ಮುಗಿಸಿದರು.ಓದಿನ ಜೊತೆ ಜೊತೆಗೇ ಬಿಚೇಂದ್ರಿಪಾಲ್ ಅವರು ತಮ್ಮ ಪರ್ವತವೇರುವ ಗುರಿಯನ್ನು ಸಹಮರೆಯಲಿಲ್ಲ.ಕಾಲನ ಪರ್ವತವನ್ನು ಏರಿದರು. 1982ರಲ್ಲಿ ಗಂಗೋತ್ರಿ ಗ್ಲೇಸಿಯರ್ ಮತ್ತು ರುಡ್ ಗೆರೊ ಪರ್ವತವನ್ನು ಏರಿದರು. 1983 ರಲ್ಲಿ ಹಿಮಾಲಯ ಪರ್ವತಾರೋಹಿಗಳ ಸಮ್ಮೇಳನ ನಡೆದಾಗತೆಂಜಿಂಗ್ ನೋರ್ಗೆ ಹಾಗೂ ಜುಂಕೆ ತಾಬೀಯವರನ್ನು ಭೇಟಿಯಾದರು.ಎವರೆಸ್ಟ್ ಇರುವಾಗ ಅವರ ಜೊತೆ ಪರ್ವತಾರೋಹಿ ಅಂಗದೋರ್ಜಿ ಅವರು ಸಹ ಇದ್ದರು. ಕರ್ನಲ್ ಖುಲ್ಲರ್ ಅವರು ಸೌತ್ ಕೊಲ್ ವರೆಗಿನ ಶಿಖರ ಏರುವಿಕೆಗಾಗಿ ಮೂರು ಶಿಖರ ದಳದ ಎರಡು ಸಮೂಹಗಳನ್ನು ಮಾಡಿದ್ದರು. ಅವರು ಬೆಳಿಗ್ಗೆ ನಾಲ್ಕು ಗಂಟೆಗೆ ಎದ್ದು ಮಂಜುಗಡ್ಡೆಯನ್ನು ಕರಗಿಸಿ ಚಹಾ ಮಾಡಿದರು. ಬಿಸ್ಕೆಟ್ ಮತ್ತು ಅರ್ಧ ಚಾಕಲೇಟಿನ ಲಘು ಉಪಹಾರ ಮಾಡಿದ ಬಳಿಕ 5.30 ಗಂಟೆಗೆ ಟಂಬುವಿನಿಂದ ಹೊರಟರು. ಸೌತ್ ಕೋಲ್ನಿಂದ ಅಂಗದೋರ್ಜಿ ಮತ್ತು ಅವರು ಹೋರಡುವಾಗ ಸಮಯ 6:20 ಆಗಿತ್ತು. ಹಗುರವಾಗಿ ಗಾಳಿ ಬೀಸುತ್ತಿತ್ತು. ಚಳಿ ತುಂಬಾ ಅಧಿಕವಾಗಿತ್ತು. ಹಗ್ಗದ ಹೊರತಾಗಿಯೂ ಏರುವಿಕೆಯನ್ನು ಆರಂಭಿಸಿದರು. ಮಂಜುಗಡ್ಡೆಯನ್ನು ಕತ್ತರಿಸಲು ಗುದ್ದಲಿಯ ಬಳಕೆಯನ್ನು ಮಾಡಿದರು. ಎರಡು ಗಂಟೆಗಿಂತಲೂ ಕಡಿಮೆ ಸಮಯದಲ್ಲಿ ಶಿಖರ ಕ್ಯಾಂಪನ್ನು ತಲುಪಿದರು. ಸ್ವಲ್ಪ ಚಹಾ ಕುಡಿದು ಮತ್ತೆ ಏರುವಿಕೆಯನ್ನು ಆರಂಭಿಸಿದರು .ಲ್ಹಾಟು ಒಂದು ನೈಲಾನ್ ಹಗ್ಗವನ್ನು ತೆಗೆದುಕೊಂಡು ಬಂದಿದ್ದ. ಅಂಗ ದೊರ್ಜಿ ಮತ್ತು ಅವರು ಹಗ್ಗದ ಸಹಾಯದಿಂದ ಏರಲು ಆರಂಭಿಸಿದರು. ಬಿಚೇಂದ್ರಿಯವರ ರೆಗ್ಯುಲೇಟರನಿಂದ ಲ್ಹಾಟು ಆಕ್ಸಿಜನ್ ಕೊರತೆಯನ್ನು ನೀಗಿಸಿದಾಗ ಕಠಿಣ ಏರುವಿಕೆಯು ಅವರಿಗೆ ಸುಲಭವೆನಿಸಿತು. ದಕ್ಷಿಣ ಶಿಖರದ ಮೇಲೆ ವೇಗವಾದ ಗಾಳಿಯು ಚೂರು ಚೂರಾದ ಮಂಜಿನ ಕಣಗಳನ್ನು ನಾಲ್ಕು ಕಡೆಗೆ ಹಾರಿಸುತ್ತಿದ್ದವು. 1984 ಮೇ 23ರಂದು ಮದ್ಯಾಹ್ನ 1:7ಕ್ಕೆ ಏವರೆಸ್ಟ ಶಿಖರದ ಮೇಲೆ ನಿಂತಿದ್ದರು. ಎವರೆಸ್ಟ್ ಶಿಖರದ ಮೇಲೆ ಇಬ್ಬರು ವ್ಯಕ್ತಿಗಳು ನಿಲ್ಲುವಷ್ಟು ಸ್ಥಳಾವಕಾಶವಿರಲಿಲ್ಲ .ಮಂಜುಗಡ್ಡೆಯನ್ನು ಅಗೆದು ತಮ್ಮನ್ನು ತಾವು ಸುರಕ್ಷಿತ ಮಾಡಿಕೊಂಡರು. 4 ಕಡೆಯಲ್ಲಿ ಸಾವಿರಾರು ಮೀಟರ್ ಉದ್ದದ ನೇರವಾದ ಇಳಿಜಾರನ್ನು ನೋಡಿ ನಮ್ಮ ಎದುರು ಮುಖ್ಯಪ್ರಶ್ನೆ ಸುರಕ್ಷತೆಯ ದಾಗಿತ್ತು. ಮೊಣಕಾಲೂರಿ ಕೂತು ತಮ್ಮ ಹಣೆಯನ್ನು ಎವರೆಸ್ಟ್ ಶಿಖರದ ಕಿರೀಟಕ್ಕೆ ತಾಗಿಸಿದರು ಹಾಗೂ ಮುತ್ತಿಕ್ಕಿದರು. ಚೀಲದಿಂದ ದುರ್ಗಾಮಾತೆಯ ಚಿತ್ರ ಹಾಗೂ ಹನುಮಾನ್ ಚಾಲೀಸಾವನ್ನು ತೆಗೆದು ಕೆಂಪು ಬಟ್ಟೆಯಲ್ಲಿ ಸುತ್ತಿ ಪೂಜೆಯನ್ನು ಮಾಡಿದರು. ತದನಂತರ ಅದನ್ನು ಮಂಜಿನಲ್ಲಿ ಹೂತಿಟ್ಟರು. ಸೋನಂ ಫುಲ್ಜರ್ ಅವರು ತಲುಪಿದ ನಂತರ ಫೋಟೋ ತೆಗೆದರು. ಕರ್ನಲ್ ಖುಲ್ಲರರವರು ವಾಕಿ-ಟಾಕಿ ಯಲ್ಲಿ ಶುಭಾಶಯಯವನ್ನು ಹೇಳಿದರು. 1 ಗಂಟೆ 55 ನಿಮಿಷಕ್ಕೆ ಅಲ್ಲಿಂದ ಮರಳಿ ಅಂಗ ದೋರ್ಜಿ ಅವರ ಜೊತೆಗೆ ಸಂಜೆ 5.30 ಗಂಟೆಗೆ ಸೌತ್ ಕೋಲನ್ನು ತಲುಪಿದರು. ಅವರಿಗೆ ಪರ್ವತಾರೋಹಣದ ಶ್ರೇಷ್ಠತೆಗಾಗಿ ಭಾರತೀಯ ಪರ್ವತಾರೋಹಣ ಸಂಘದ ಪ್ರತಿಷ್ಠಿತ ಸ್ವರ್ಣಪದಕ ಹಾಗೂ ಅನೇಕ ಗೌರವ ಹಾಗೂ ಪುರಸ್ಕಾರವನ್ನು ಪ್ರಧಾನ ಮಾಡಲಾಯಿತು. ಪದ್ಮಶ್ರೀ ಮತ್ತು ಪ್ರತಿಷ್ಠಿತ ಅರ್ಜುನ್ ಪುರಸ್ಕಾರದ ಘೋಷಣೆ ಮಾಡಲಾಯಿತು.

प्रश्नोत्तर

एक अंक के प्रश्नोत्तर

उत्तर: बिछेन्द्री पाल को एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला होने का गौरव प्राप्त हुआ है।

उत्तर: बिछेन्द्री की माता का नाम 'हंसादेई नेगी और पिता का नाम किशनपाल सिंह ' था।

उत्तर : बिछेन्द्री ने निश्चय किया कि उनके भाई की तरह पर्वतारोहण करेगी।

उत्तर : बिछेन्द्री ने गंगोत्री ग्लेशियर पर चढ़ाई की।

उत्तर : सन 1983 में दिल्ली में हिमालय पर्वतारोहियों ' का सम्मेलन हुआ था।

उत्तर : एवरेस्ट पर भारत का झंडा फहराते समय पाल के साथ पर्वतारोही अंग दोरजी थे।

उत्तर : कर्नल का नाम खुल्लर' था ।

उत्तर : ल्हा्टू नायलॉन की रस्सी लाया था ।

उत्तर : बिछेन्द्री ने थैले से 'हनुमान चालीसा और दुर्गा माँ ' का चित्र निकाला ।

उत्तर : कर्नल ने बधाई देते हुए बिछेन्द्री से कहा कि’ ‘देश को तुम पर गर्व है।

उत्तर : मेजर का नाम 'कुमार' था।

उत्तर : बिछेन्द्री को भारतीय पर्वतारोहण संघ ने प्रतिष्ठित ‘स्वर्ण पदक ' देकर सम्मान किया।

दो अंकवाले प्रश्नोत्तर

उत्तर: बिछेन्द्री का जन्म एक साधारण भारतीय परिवार में हुआ था। उनके माता का नाम हंसादेई नेगी और पिता का नाम किशनपाल सिंह था । वे अपने माता पिता के पाँच संतानों में तीसरी संतान थी। बिछेन्द्री के बड़े भाई को पहाड़ों पर जाना अच्छा लगता था। इसी जज़्बे से बिछेन्द्री पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया ।

उत्तर: बिछेन्द्री का बचपन बहुत मुश्किल में बीता । बचपन में बिछेन्द्री को रोज़ 5 किलोमीटर पैदल चल कर स्कूल जाना पड़ता था । सिलाई का काम सीख लिया और सिलाई करके पढ़ाई का खर्च जुटाने लगी। इसी तरह उन्होंने संस्कृत में एम.ए तथा बी.एड तक की शिक्षा प्राप्त की।

उत्तर : बिछेन्द्री ने पर्वतारोहण के लिए 'नायलॉन की रस्सी, ऑक्सीजन और फावड़े' का उपयोग किया था।

उत्तर : एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचकर बिछेन्द्री ने फावड़े से पहले बर्फ की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से स्थिर किया । इसके बाद अपने घुटनों के बल बैठी । बर्फ पर अपने माथे को लगाकर उन्होंने सागरमाथे के ताज का चुंबन किया । बिना उठे ही हनुमान चालीसा और दुर्गा माँ का चित्र निकालकर लाल कपड़े में लपेटा और छोटी – सी पूजा करके इनको बर्फ में दबा दिया ।

चार अंकवाले प्रश्नोत्तर

उत्तर: बिछेंद्री ने बड़े भाई से प्रेरित होकर पर्वतारोहण करना चाहा। इसलिए पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया। वे बचपन में रोज़ पाँच किलोमीटर पैदल चल कर स्कूल जाती थी। बाद में पर्वतारोहण-प्रशिक्षण के दौरान उनका कठोर परिश्रम बहुत काम आया। सिलाई का काम सीखकर सिलाई करके पढ़ाई का खर्च जुटाने लगीं। पढ़ाई के साथ-साथ बिछेंद्री ने पहाड़ पर चढ़ने के अपने लक्ष्य को भी हमेशा अपने सामने रखा। इसी दौरान उन्होंने ने 'कालानाग' पर्वत की चढ़ाई की। सन् 1982 में उन्होंने 'गंगोत्री ग्लेशियर'(6672 मी) तथा 'रूड गेरो' (5819 मी) की चढ़ाई की जिससे उनमें आत्मविश्वास और बढ़ा।अगस्त 1983 में जब दिल्ली में हिमालय पर्वतारोहियों का सम्मेलन हुआ तब वे पहली बार तेनजिंग नोर्गे (एवरेस्ट पर चढ़नेवाले पहले पुरुष) तथा जुंके ताबी (एवरेस्ट पर चढ़नेवाली पहली महिला) से मिलीं।

उत्तर: एवरेस्ट चढते समय बिछेन्द्री के साथ पर्वतारोही अंग दोरजी भी थे। उस दिन कर्नल खुल्लर ने साउथ कोल तक की चढ़ाई के लिए तीन शिखर दलों के दो समूह बनाया था। वे सुबह चार बजे उठी, बर्फ पिघलाई और चाय बनाई। कुछ बिस्कुट और आधी चॉकलेट का हल्का नाश्ता करने के पश्चात् वे लगभग साढ़े पाँच बजे अपने तंबू से निकल पड़ी। सुबह 6:20 पर जब अंग दोरजी और वे साउथ कोल से बाहर निकले तो दिन ऊपर चढ़ आया था। हल्की-हल्की हवा चल रही थी और ठंड बहुत अधिक थी। उन्होने बगैर रस्सी के ही चढ़ाई की। बर्फ काटने के लिए फावड़े का इस्तेमाल किया।दो घंटे से कम समय में ही वे शिखर कैंप पर पहुँच गए। थोड़ी चाय पीने के बाद उन्होने पुनः चढ़ाई शुरू कर दी। ल्हाटू एक नायलॉन की रस्सी लाया था इसलिए अंग दोरजी और वे रस्सी के सहारे चढ़े, । उनके रेगुलेटर पर जैसे ही ल्हाटू ने ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई उन्हें कठिन चढ़ाई आसान लगने लगी।दक्षिणी शिखर पर तेज़ हवा के झोंके भुरभुरे बर्फ के कणों को चारों तरफ उड़ा रहे थे ।23 मई, 1984 के दिन दोपहर के 1 बजकर 7 मिनट पर वे एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी।

उत्तर : प्रस्तुत पाठ से यह संदेश मिलता है कि महिलाएँ भी साहस प्रदर्शन में पुरुषों से कुछ कम नहीं हैं। बिछेंद्री पाल इस विचार का एक निदर्शन है। बिछेद्री पाल को एवरेस्ट की चोटी पर चढ़नेवाली पहली भारतीय महिला होने का गौरव प्राप्त है। - साहस गुण, दृढ़ निश्चय, अथक परिश्रम, मुसीबतों का सामना करना इत्यादि आदर्श गुण सीख सकते हैं । इसके साथ हिमालय की ऊँची चोटियों की जानकारी भी प्राप्त करते हैं । इस पाठ से जान सकते हैं कि मेहनत का फल अच्छा होता है।