तुलसी के दोहे

कविता का सारांश

मुखिया मुख सों चाहिए ,
खान पान को एक |
पालै पोसै सकल अंग ,
तुलसी सहित विवेक ।।

&nbsp&nbsp&nbsp&nbsp&nbsp&nbsp तुलसीदासजी कहते हैं कि , मुखिया ( नेता ) मुख ( मुंह ) के समान होना चाहिए । जिस प्रकार मुँह खाने पीने का काम अकेला करता है , लेकिन उससे शरीर के सकल अंगों का पालन - पोषण होता है । उसी तरह मुखिया काम अपनी तरह से करना चाहिए । लेकिन उस काम का फल सभी को मिलना चाहिए ।

&nbsp&nbsp&nbsp&nbsp&nbsp&nbsp ಈ ದೋಹೆಯಲ್ಲಿ ತುಳಸಿದಾಸರು ನಾಯಕನು ಮುಖದ ಗುಣಗಳನ್ನು ಹೊಂದಿರಬೇಕು ಎಂದು ತಿಳಿಸುತ್ತಾರೆ. ದೇಹದಲ್ಲಿ ಬಾಯಿ ಮಾತ್ರ ತಿನ್ನುವ ಮತ್ತು ಕುಡಿಯುವ ಕೆಲಸವನ್ನು ಮಾಡುತ್ತದೆ, ಆದರೆ ಅದು ತಿನ್ನುವುದರಿಂದ ಅದು ದೇಹದ ಎಲ್ಲಾ ಭಾಗಗಳನ್ನು ಪೋಷಿಸುತ್ತದೆ. ತುಳಸಿಯ ಅಭಿಪ್ರಾಯದಲ್ಲಿ, ಮುಖ್ಯಸ್ಥನು ತನ್ನದೇ ಆದ ರೀತಿಯಲ್ಲಿ ಕೆಲಸವನ್ನು ಮಾಡಲು ಅಷ್ಟೇ ಬುದ್ದಿವಂತನಾಗಿರಬೇಕು, ಆದರೆ ಫಲಿತಾಂಶಗಳನ್ನು ಎಲ್ಲರೊಂದಿಗೆ ಹಂಚಿಕೊಳ್ಳಬೇಕು.

जड़ चेतन , गुण - दोषमय ,
विस्व कीन्ह करतार |
संत - हंस गुण गहहिं पय ,
परिहरि वारि विकार ।।

&nbsp&nbsp&nbsp&nbsp&nbsp&nbsp प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास हंस पक्षी के साथ संत की तुलना करते हुए उसके स्वभाव का परिचय देते हैं। सृष्टिकर्ता ने इस संसार को जड़ - चेतन और गुण - दोष मिलाकर बनाया है । अर्थात् , इस संसार में अच्छे बुरे ( सार - निस्सार ) , समझ - नासमझ के रूप में अनेक गुण - दोष भरे हुए हैं। लेकिन हंस रूपी साधु लोग विकारों को छोड़कर अच्छे गुणों को अपनाते हैं ।

&nbsp&nbsp&nbsp&nbsp&nbsp&nbsp ಈ ದೋಹೆಯಲ್ಲಿ ತುಳಸಿದಾಸರು ಸಂತನ ಗುಣವನ್ನು ಹಂಸ ಹಕ್ಕಿಯೊಂದಿಗೆ ಹೋಲಿಸುವ ಮೂಲಕ ವಿವರಿಸುತ್ತಾರೆ. ಸೃಷ್ಟಿಕರ್ತನು ಈ ಜಗತ್ತನ್ನು ಒಳ್ಳೆಯ ಹಾಗೂ ಕೆಟ್ಟ ಗುಣಗಳಿಂದ ಸೃಷ್ಟಿಸಿದ್ದಾನೆ. ಅಂದರೆ, ಈ ಜಗತ್ತಿನಲ್ಲಿ ಅನೇಕ ಗುಣಗಳು ಒಳ್ಳೆಯದು, ಕೆಟ್ಟದು (ಸಾರ - ಅಸಂಬದ್ಧ), ತಿಳುವಳಿಕೆ - ಬುದ್ಧಿಹೀನ - ದೋಷಗಳಿಂದ ತುಂಬಿವೆ, ಆದರೆ ಹಂಸದಂತಹ ವಿವೇಕಯುತ ಜನರು ದುರ್ಗುಣಗಳನ್ನು ಹೊರತುಪಡಿಸಿ ಉತ್ತಮ ಗುಣಗಳನ್ನು ಅಳವಡಿಸಿಕೊಳ್ಳುತ್ತಾರೆ.

दया धर्म का मूल है ,
पाप मूल अभिमान ।
तुलसी दया न छाँडिये ,
जब लग घट में प्राण ||

प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास ने स्पष्टतः बताया है कि दया धर्म का मूल है और अभिमान पाप का । इसलिए कवि कहते हैं कि जब तक शरीर में प्राण हैं , तब तक मानव को अपना अभिमान छोड़कर दयालु बने रहना चाहिए ।

ಈ ದೋಹೆಯಲ್ಲಿ ತುಳಸಿದಾಸರು ಕರುಣೆಯು ಧರ್ಮದ ಮೂಲ ಮತ್ತು ಅಹಂಕಾರವು ಪಾಪ ಮೂಲ ಎಂದು ಸ್ಪಷ್ಟವಾಗಿ ಹೇಳಿದ್ದಾರೆ. ಆದ್ದರಿಂದ, ದೇಹದಲ್ಲಿ ಜೀವ ಇರುವವರೆಗೂ ಮನುಷ್ಯನು ತನ್ನ ಅಹಂಕಾರವನ್ನು ಬಿಟ್ಟು ದಯೆಯಿಂದ ಇರಬೇಕು ಎಂದು ಕವಿ ಹೇಳುತ್ತಾರೆ.

जड़ चेतन , गुण - दोषमय ,
विस्व कीन्ह करतार |
संत - हंस गुण गहहिं पय ,
परिहरि वारि विकार ।।

प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास हंस पक्षी के साथ संत की तुलना करते हुए उसके स्वभाव का परिचय देते हैं। सृष्टिकर्ता ने इस संसार को जड़ - चेतन और गुण - दोष मिलाकर बनाया है । अर्थात् , इस संसार में अच्छे बुरे ( सार - निस्सार ) , समझ - नासमझ के रूप में अनेक गुण - दोष भरे हुए हैं। लेकिन हंस रूपी साधु लोग विकारों को छोड़कर अच्छे गुणों को अपनाते हैं ।

ಈ ದೋಹೆಯಲ್ಲಿ ತುಳಸಿದಾಸರು ಸಂತನ ಗುಣವನ್ನು ಹಂಸ ಹಕ್ಕಿಯೊಂದಿಗೆ ಹೋಲಿಸುವ ಮೂಲಕ ವಿವರಿಸುತ್ತಾರೆ. ಸೃಷ್ಟಿಕರ್ತನು ಈ ಜಗತ್ತನ್ನು ಒಳ್ಳೆಯ ಹಾಗೂ ಕೆಟ್ಟ ಗುಣಗಳಿಂದ ಸೃಷ್ಟಿಸಿದ್ದಾನೆ. ಅಂದರೆ, ಈ ಜಗತ್ತಿನಲ್ಲಿ ಅನೇಕ ಗುಣಗಳು ಒಳ್ಳೆಯದು, ಕೆಟ್ಟದು (ಸಾರ - ಅಸಂಬದ್ಧ), ತಿಳುವಳಿಕೆ - ಬುದ್ಧಿಹೀನ - ದೋಷಗಳಿಂದ ತುಂಬಿವೆ, ಆದರೆ ಹಂಸದಂತಹ ವಿವೇಕಯುತ ಜನರು ದುರ್ಗುಣಗಳನ್ನು ಹೊರತುಪಡಿಸಿ ಉತ್ತಮ ಗುಣಗಳನ್ನು ಅಳವಡಿಸಿಕೊಳ್ಳುತ್ತಾರೆ.

तुलसी साथी विपत्ति के ,
विद्या विनय विवेक ।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत ,
राम भरोसो एक ।।

प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास जी कह रहे हैं कि मनुष्य पर जब विपत्ति पड़ती है तब विद्या , विनय तथा विवेक ही उसका साथ निभाते हैं । जो राम पर भरोसा करता है , वह साहसी , सत्यव्रती और सुकृतवान बनता है।

ಈ ದೋಹೆಯಲ್ಲಿ ತುಳಸಿದಾಸರು ಮನುಷ್ಯನ ಮೇಲೆ ವಿಪತ್ತು ಉಂಟಾದಾಗ ಅವನಲ್ಲಿರುವ ವಿದ್ಯೆ, ವಿನಯ ಮತ್ತು ವಿವೇಕಗಳು ಅವನನ್ನು ಕಾಪಾಡುತ್ತವೆ. ಆದುದರಿಂದ ಯಾರು ರಾಮನನ್ನು ನಂಬುತ್ತಾರೋ ಅವರು ಧೈರ್ಯಶಾಲಿಗಳು, ಸತ್ಯವಂತರು, ಸುಚಾರಿತ್ಯವನ್ನು ಹೊಂದುತ್ತಾರೆ.

राम नाम मनि दीप धरु ,
जीह देहरी द्वार ।
तुलसी भीतर बाहिरौ ,
जो चाहसी उजियार ।।

प्रस्तुत दोहे के द्वारा तुलसीदास जी कहते हैं कि जिस तरह देहरी पर दिया रखने से घर के भीतर तथा आँगन में प्रकाश फैलता है उसी तरह राम - नाम जपने से मानव की आंतरिक और बाह्य शुद्धि होती है|

ಈ ದೋಹೆಯಲ್ಲಿ ತುಳಸಿದಾಸರು, ರಾಮ ನಾಮ ಜಪಿಸುವ ಮಹತ್ವವನ್ನು ದೀಪದ ಉದಾಹರಣೆಯ ಮೂಲಕ ಹೇಳುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. ಹೇಗೆ ಹೊಸ್ತಿಲಿನ ಮೇಲೆ ಇಟ್ಟ ದೀಪದಿಂದ ಮನೆಯ ಒಳಗಡೆ ಹಾಗೂ ಹೊರಗಡೆ ಬೆಳಕು ಬೀಳುತ್ತದೆಯೋ, ಅದೇ ರೀತಿ ರಾಮ – ನಾಮವನ್ನು ಜಪಿಸುವುದರಿಂದ ಮಾನವ ಆಂತರಿಕ ಮತ್ತು ಬಾಹ್ಯ ಶುದ್ದೀಕರಣವಾಗುತ್ತದೆ.

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प्रश्नोत्तर

एक अंक के प्रश्नोत्तर

उत्तर: तुलसीदास मुख को " मुखिया " मानते है ।

उत्तर: मुखिया को " मुँह " के समान रहना चाहिए ।

उत्तर : हंस का गुण पानी रूपी विकार को छोडकर सिर्फ दूध रूपी गुण पीने का होता है ।

उत्तर : मुख शरीर के सारे अंगों का पालन - पोषण करता है ।

उत्तर : दया " धर्म " का मूल है ।

उत्तर : तुलसीदास जी " भक्तिकाल की रामभक्ति " शाखा के कवि हैं |

उत्तर : तुलसीदास जी की माता का नाम हुलसी और पिता का नाम आत्माराम था ।

उत्तर : तुलसीदासजी के बचपन का नाम " रामबोला " था ।

उत्तर : पाप का मूल “ अभिमान ( अहंकार ) " है ।

उत्तर : तुलसीदास जी के अनुसार विपत्ति के साथी “ विद्या , विनय और विवेक " हैं।

दो अंकवाले प्रश्नोत्तर

उत्तर: तुलसीदासजी कहते है कि , मुखिया ( नेता ) मुख ( मुंह ) के समान होना चाहिए | जिस प्रकार मुँह खाने पीने का काम अकेला करता है , लेकिन उससे शरीर के सकल अंगों का पालन - पोषण होता है । उसी तरह मुखिया को भी काम अपनी तरह से करना चाहिए । लेकिन उस काम का फल सभी को मिलना चाहिए ।

उत्तर: तुलसीदास हंस पक्षी के साथ संत की तुलना करते हुए उसके स्वभाव का परिचय देते हैं| सृष्टिकर्ता ने इस संसार को जड़ - चेतन और गुण - दोष से मिलाकर बनाया है । अर्थात् , इस संसार में अच्छे बुरे ( सार - निस्सार ) , समझ - नासमझ के रूप में अनेक गुण - दोष भरे हुए हैं, लेकिन हंस रूपी साधु लोग विकारों को छोड़कर अच्छे गुणों को अपनाते हैं ।

उत्तर : प्रस्तुत दोहे के द्वारा तुलसीदास जी कहते हैं कि जिस तरह देहरी पर दिया रखने से घर के भीतर तथा आँगन में प्रकाश फैलता है उसी तरह राम - नाम जपने से मानव के आंतरिक और बाह्य शुद्धि होती है ।