ईमानदारों के सम्मेलन में

सारांश

ईमानदारों के सम्मेलन में यह हरि शंकर परसाई द्वारा लिखित एक व्यंग्य रचना है। इससे ईमानदार लोगों की बेईमानी का उजागर हुआ है। एक दिन लेखक को एक पत्र आता है। लेखक इसे देखकर आश्चर्यचकित होते हैं। उसमें लिखा था कि वे इस नगर में एक ईमानदारों का सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं। लेखक इस सम्मेलन का उद्घाटन करें क्योंकि वे इस देश के सबसे ईमानदार व्यक्ति हैं। उनके आगमन से उदीयमान ईमानदार अधिक प्रेरित होंगे। लेकिन लेखक ने ईमानदार होने जैसी कोई काम नहीं की थी। लेखक का ईमानदारी से कोई लेना-देना नहीं था।लेखक को दूसरे दर्जे में जाकर पहले दर्जे का किराया लेने से एक सौ पचास रुपये बचते थे। रेलवे स्टेशन पर लेखक का स्वागत किया गया। कई फूल मालाओं को पहनाया गया। लेखक ने यह सोचा कि अगर कोई माली होता तो उसे बेच लेता। सम्मेलन का उद्घाटन शानदार हुआ। लेखक ने एक घंटे तक भाषण दिया। सम्मेलन के बाद, लेखक की चप्पल चोरी हो गयी थी।चप्पलों को चोरी करनेवाला व्यक्ति आकर सुझाव दे रहा था कि चप्पल कैसे रकना है। रात में सम्मेलन से वापास आकर देखा तो, एक चादर गायब थी। दूसरे दिन दो और चादर गायब थीं। कुल तीन चादर चली गई थीं। अगले दिन सम्मेलन में जाना था। धूप का चश्मा कहीं नहीं था। धूप का चश्मा चोरी करनेवाला चश्मा पहने इतमिनान से लेखक के साथ बात कर रहा था। तीसरे दिन कमरे में कम्बल गायब था। इससे परेशान होकर, लेखक अपने सिर के नीचे पहनने के कपड़े सिरहाने दबाकर सोये। चौथे दिन ताला भी गायब था। लेखक सोचने लगे कि मेरा सारा सामान चला गया है। अब केवल मैं बचा हूँ, अगर रुका तो मैं ही चुरा लिया जाऊँगा । इस तरह लेखक ने ईमानदार लोगों की बेईमानी का उजागर किया है।

ಕನ್ನಡ ಸಾರಾಂಶ

ಪ್ರಾಮಾಣಿಕರ ಸಮ್ಮೇಳನದಲ್ಲಿ ಇದು ಹರಿಶಂಕರ ಪರಸಾಯಿಯವರು ಬರೆದ ವ್ಯಂಗ್ಯ ರಚನೆಯಾಗಿದೆ. ಇದರ ಮೂಲಕ ಪ್ರಾಮಾಣಿಕರೆಂದು ಕರೆಯಲ್ಪಡುವ ಜನರ ಅಪ್ರಾಮಾಣಿಕತೆಯನ್ನು ಬಹಿರಂಗಪಡಿಸಿದ್ದಾರೆ. ಒಂದು ದಿನ ಲೇಖಕರಿಗೆ ಒಂದು ಪತ್ರ ಬರುತ್ತದೆ. ಅದನ್ನು ನೋಡಿದ ಲೇಖಕರಿಗೆ ಆಶ್ಚರ್ಯವಾಗುತ್ತದೆ. ಅದರಲ್ಲಿ ನಾವು ಈ ಊರಿನಲ್ಲಿ ಪ್ರಾಮಾಣಿಕರ ಸಮ್ಮೇಳನವನ್ನು ಮಾಡುತ್ತಿದ್ದೇವೆ. ನೀವು ಈ ದೇಶದಲ್ಲೇ ಸುಪ್ರಸಿದ್ದ ಪ್ರಾಮಾಣಿಕರಾಗಿರುವುದರಿಂದ ಈ ಸಮ್ಮೇಳನದ ಉದ್ಘಾಟನೆ ನೀವೆ ಮಾಡಬೇಕು .ನಿಮಗೆ ಮೊದಲನೆಯ ದರ್ಜೆಯಲ್ಲಿ ಪ್ರಯಾಣದ ವೆಚ್ಚ ಹಾಗೂ ತಮಗೆ ಉಳಿದುಕೊಳ್ಳಲು ಒಳ್ಳೆಯ ಸ್ಥಳ ಹಾಗೂ ಊಟದ ವ್ಯವಸ್ಥೆಯನ್ನು ಮಾಡಿಕೊಡುತ್ತೇವೆ . ನಿಮ್ಮ ಆಗಮನದಿಂದ ಹೊಸ ಪ್ರಾಮಾಣಿಕ ವ್ಯಕ್ತಿಗಳಿಗೆ ಹೆಚ್ಚು ಪ್ರೇರಣೆ ದೊರೆಯುತ್ತದೆ. ಆದರೆ ಲೇಖಕರು ಪ್ರಾಮಾಣಿಕ ವ್ಯಕ್ತಿಯೆಂದು ತಿಳಿಯಲು ಅಂಥ ಯಾವುದೇ ಕೆಲಸವನ್ನು ಮಾಡಿರಲಿಲ್ಲ , ಲೇಖಕರು ಎರಡನೇಯ ದರ್ಜೆಯ ಟಿಕೇಟ ತೆಗೆಸಿ ಮೊದಲನೇಯ ದರ್ಜೆಯ ದುಡ್ಡು ಪಡೆದರೆ 150 ರೂ . ಉಳಿತಾ ಯವಾಗುತ್ತದೆ ಎಂದು ಸಮ್ಮೇಳನಕ್ಕೆ ಹೊರಟರು. ಪ್ರಾಮಾಣಿಕತೆಗೂ ಲೇಖಕರಿಗೂ ಯಾವುದೇ ಸಂಬಂಧವಿರಲಿಲ್ಲ . ಈ ರೀತಿ ಮಾಡುವುದು ಅಪ್ರಾಮಾಣಿಕತೆಯಾಗಿತ್ತು , ರೇಲ್ವೆ ಸ್ಟೇಶನ್ನಲ್ಲಿ ಲೇಖಕರಿಗೆ ದೊಡ್ಡ ಪ್ರಮಾಣದ ಸ್ವಾಗತ ಮಾಡಲಾಯಿತು. ಹಲವಾರು ಮಾಲೆಗಳನ್ನು ಹಾಕಿದರು . ಅಲ್ಲಿ ಹೂವಾಡಿಗನಿದ್ದಿದ್ದರೆ ಮಾಲೆಗಳನ್ನು ಅವನಿಗೆ ಮಾರಬಹುದಿತ್ತೆಂದು ವಿಚಾರ ಮಾಡಿ ಆಚೆ ಇಚೆ ಕಣ್ಣಾಡಿಸಿ ಲೇಖಕರು ನೋಡಿದರು. ಸಮ್ಮೇಳನ ವೈಭವದಿಂದ ಉದ್ಘಾಟನೆಯಾಯಿತು . ಲೇಖಕರು ಒಂದು ಘಂಟೆಗಳ ಕಾಲ ಭಾಷಣ ಮಾಡಿದರು. ಸಮ್ಮೇಳನದ ನಂತರ ಲೇಖಕರು ಚಪ್ಪಲಿ ಕಾಣಲಿಲ್ಲ ಯಾವುದೋ ಒಂದು ಜೊತೆ ಹಳೆಯದಾದ ಚಪ್ಪಲಿ ಮಾತ್ರ ಉಳಿದಿತ್ತು . ರಾತ್ರಿ ಸಮ್ಮೇಳನದಿಂದ ಹಿಂತುರಿಗಿದಾಗ ಒಂದು ಚಾದರ ಕಾಣೆಯಾಗಿತ್ತು . ಎರಡನೇಯ ದಿನ ಘೋಷ್ಠಿ ಮುಗಿಸಿ ಬಂದ ನಂತರ ಮತ್ತೆರಡು ಚಾದರ ಅಲ್ಲಿಂದ ಕಾಣೆಯಾಗಿತ್ತು , ಒಟ್ಟು ಮೂರು ಚಾದರಗಳು ಅಲ್ಲಿರಲಿಲ್ಲ . ಮರುದಿನ ಸಮ್ಮೇಳನಕ್ಕೆ ಹೋಗುವಾಗ ಬಿಸಿಲಿನಿಂದ ಕನ್ನಡಕವನ್ನು ( ಚಶಮಾ) ಹುಡುಕಾಡಿದೆ ಎಲ್ಲೂ ಕಾಣಲಿಲ್ಲ . ಸಂಜೆ ಇದ್ದ ಕನ್ನಡಕ ಈಗ ಕಾಣೆಯಾಗಿತ್ತು . ಮೂರನೇ ದಿನ ಕೋಣೆಗೆ ಬಂದಾಗ ಚಳಿಯಿರುವುದನ್ನು ಕಂಡು ಹಾಸಿಗೆಯಿಂದ ಕಂಬಳಿಯನ್ನು ತೆಗೆದುಕೊಳ್ಳಲು ನೋಡಿದೆ ಕಂಬಳಿ ಅಲ್ಲಿಂದ ಕಾಣೆಯಾಗಿತ್ತು . ಇದರಿಂದ ವಿಚಲಿತರಾದ ಲೇಖಕರು ರಾತ್ರಿ ಹಾಕಿಕೊಂಡ ಬಟ್ಟೆಗಳನ್ನು ತಲೆಯ ಕೆಳಗೆ ಹಾಗೂ ಹೊಸ ಚಪ್ಪಲ ( ಪಾದರಕ್ಷೆ) ಹಾಗೂ ಶೇವಿಂಗ್ ಡಬ್ಬಿಯನ್ನು ಹಾಸಿಗೆಯ ಕೆಳಗೆ ಇಟ್ಟುಕೊಂಡು ಮಲಗಿದರು , ನಾಲ್ಕನೇ ದಿನ ಬೆಳಿಗ್ಗೆ ಲೇಖಕರಿಗೆ ಊರಿಗೆ ಹೋಗುವದಿತ್ತು . ಅವರೆಲ್ಲರೂ ಒಳ್ಳೆಯ ರೀತಿಯಲ್ಲಿ ದುಡ್ಡನ್ನು ನೀಡಿದರು . ಪರಸಾಯಿಯವರ ಟ್ರೇನ್ ತಡವಿದ್ದದ್ದರಿಂದ ಸ್ವಾಗತ ಸಮಿತಿಯ ಮಂತ್ರಿಗಳು ಒಳ್ಳೆಯ ಹೋಟೆಲ್ ಒಂದರಲ್ಲಿ ಲೇಖಕರನ್ನು ಊಟಕ್ಕೆ ಕರೆದರು. ಲೇಖಕರು ಕೋಣೆಗೆ ಬೀಗ ಹಾಕಲೆಂದು ಬೀಗ ಹುಡುಕಿದರು. ಆದರೆ ಬೀಗ ಸಿಗಲಿಲ್ಲ .ಅದು ಸಹಿತ ಕಳ್ಳತನವಾಗಿತ್ತು .ಇದನ್ನು ಕಂಡ ಪರಸಾಯಿಯವರು ಅಟೋ ತರಿಸಿ ನಾನು ಸ್ಟೇಶನ್ನಿಗೆ ಹೋಗುತ್ತೇನೆ ಇನ್ನೂ ನಾನು ಇಲ್ಲಿ ಇರುವುದಿಲ್ಲವೆಂದಾಗ ಮಂತ್ರಿಗಳು ನಮ್ಮ ಮೇಲೇಕೆ ನಿಮಗೆ ಬೇಸರ ಎಂದು ಕೇಳಿದರು. ಅದಕ್ಕೆ ನಾನು ನಿಮ್ಮ ಮೇಲೆ ಬೇಸರವಿಲ್ಲ ನನ್ನ ಎಲ್ಲ ವಸ್ತುಗಳು ಕಳೆದು ಹೋದವು . ನಾನು ಮಾತ್ರ ಉಳಿದಿದ್ದೇನೆ ಆದರೆ ನಾನು ಇಲ್ಲೇ ಉಳಿದರೆ ನಾನು ಕೂಡಾ ಕಳ್ಳತನವಾಗುವುದು ಖಂಡಿತ ಎಂದು ಹೇಳಿದರು. ಈ ರೀತಿ ಪ್ರಾಮಾಣಿಕರೆಂದು ಕರೆಯಲ್ಪಡುವ ಜನರ ಅಪ್ರಾಮಾಣಿಕತೆಯನ್ನು ಬಹಿರಂಗಪಡಿಸಿದ್ದಾರೆ.

प्रश्नोत्तर

एक अंक के प्रश्नोत्तर

उत्तर: लेखक परसाई जी को होटल के एक बड़े कमरे में ठहराया गया |

उत्तर: लेखक एक सौ पचास (150) रुपये बचाने के लिए दूसरे दर्जे में सफर करना चाहते थे।

उत्तर : हरिशंकर परसाई जी को देश के प्रसिद्ध ईमानदार समझकर सम्मेलन के उद्घाटन के लिए निमंत्रण भेजा गया था। इसी कारण से परसाई जी ने सम्मेलन में भाग लिया।

उत्तर : सम्मेलन में लेखक के भाग लेने से ईमानदार तथा उदीयमान ईमानदारों को बड़ी प्रेरणा मिल सकती थी।

उत्तर : लेखक पहनने के कपड़े सिरहाने दबाकर सोए ।

उत्तर : लेखक ने धूप का चश्मा टेबल पर रखा था |

दो अंकवाले प्रश्नोत्तर

उत्तर: लेखक को भेजे गये निमंत्रण पत्र में लिखा था - “हम लोग इस शहर में एक ईमानदार सम्मेलन कर रहें हैं । आप देश के प्रसिद्ध ईमानदार हैं । हमारी प्रार्थना है कि आप इस सम्मेलन का उद्घाटन करें । हम आपको आने जाने का पहले दर्जे का किराया देंगे तथा आवास , भोजन आदि की उत्तम व्यवस्था करेंगे । आपके आगमन से ईमानदारों तथा उदीयमान ईमानदारों को बड़ी प्रेरणा मिलेगी।”

उत्तर: फूल मालाएँ मिलने पर लेखक सोचने लगे कि आस - पास कोई माली होता तो फूल - मालाएँ भी बेच लेता ।

उत्तर : ईमानदारों के सम्मेलन में पुलिस ईमानदारों की तलाशी ले , यह बड़ी अशोभनीय बात हागी , फिर इतने बड़े सम्मेलन में थोड़ी गड़बड़ी होगी ही इस प्रकार लेखक ने मंत्री को समझाया ।

उत्तर : चप्पलों की चोरी होने पर ईमानदार डेलीगेट ने सुझाव दिया कि- चप्पलें एक जगह नहीं उतारना चाहिए एक चप्पल यहाँ उतारिये , तो दूसरी दस पीट दूर रकना चाहिय ।

उत्तर : लेखक की सब चीजें चुरा ली गयी । ताला तक चोरी में चला गया । अब वे बचे थे। अगर रूकते तो वे ही चुरा लिए जाते । इसलिए लेखक ने कमरा छोड़कर जाने का निर्णय लिया ।

उत्तर : लेखक ने दूसरे दर्जे में जाकर पहले का किराया लेने की बात सोची और स्टेशन पर दस बड़ी फूल - मालाएँ पहनायी गयी तो उन्होंने सोचा कि आस - पास कोई माली होता तो फूल - मालाएँ भी बेच लेते। इस प्रकार मुख्य अतिथि की बेईमानी दिखाई देती है ।

चार अंकवाले प्रश्नोत्तर

उत्तर: लेखक दूसरे दिन बैठक में जाने के लिए धूप का चश्मा खोजने लगे , शाम को उन्होंने टेबल पर रखा था अब नहीं मिल रहा था | एक दो लोगों से पूछने पर बात फैल गयी । बिना चश्मे के बैठक में आए। सम्मेलन के बीच पन्द्रह मिनट चाय की छुट्टी हुई । एक सज्जन आकर चश्मा चोरी हो जाने की बात की। वे पहले दिन चश्मा नहीं लगाये थे लेकिन अब वह चश्मा लगाये थे ।, वह धूप का चश्मा लेखक का था । लेखक से कहा कि आपने चश्मा नहीं लगाये थे क्या ? तब लेखक कहते हैं कि रात की चाँदनी में धूप का चश्मा लगाया जाता है क्या ? मैंने कमरे की टेबुल पर रख दिया था । वह सज्जन बड़े चाव से लेखक का चश्मा लगाकर इतमीनान से बैठा था ।

उत्तर: मंत्री तथा कार्यकर्ताओं के बीच इस प्रकार वार्तालाप हुआ :-
मंत्री: तुम लोग क्या करते हो ? तुम्हारी ड्यूटी यहाँ है तुम्हारे रहते चोरियाँ हो रही हैं । चोरी की बात फैली , तो कितनी बदनामी होगी ? यह ईमानदार सम्मेलन है ।
कार्यकर्ता: ' हम क्या करें ? अगर सम्माननीय डेलीगेट यहाँ वहाँ जायें, तो क्या हम उन्हें रोक सकतें हैं ?
मंत्री: मैं पुलिस को बुलाकर यहाँ सबकी तलाशी करवाता हूँ ।

उत्तर : सम्मेलन के पहले दिन लेखक उद्घाटक तथा अतिथि होने के कारण एक घंटे तक भाषण देने के बाद लोगों से बातें करते हुए चप्पलें पहनने गये लेकिन चप्पल वहाँ से गायब हो गया था । नयी चप्पल की जगह फटी पुरानी चप्पल बची थी । उसी को पहनकर आ गए । एक ईमानदार डेलीगेट उनके कमरे में आकर चप्पल के बारे में पूछने लगे , लेकिन उनके पाँवों में लेखक की ही चप्पलें थीं । वे लेखक के फटी - पुरानी चप्पल देख रहे थे , वह प्रायः उनकी ही थी । होटल आने पर देखा एक बिस्तर की चादर गायब थी। दूसरे दिन गोष्ठियाँ खतम करके रात को होटल लौटा तो देखा दो और चादर गायब हो गयी थी । दूसरे दिन बैठक में जाने के लिए धूप का चश्मा खोजने लगा , लेकिन चश्मा वहाँ से गायब था , एक सज्जन धूप का चश्मा कहाँ रखे थे पूछते हुए आये।वे पहले दिन धूप का चश्मा नहीं पहने थे , लेकिन अब वह धूप का चश्मा पहन कर आए थे। वह चश्मा लेखक का था । तीसरे दिन रात को कमरे में आए ठण्ड के कारण बिस्तर से कम्बल ओढना चाहा तो देखा कम्बल भी गायब था । इस तरह लेखक की सब चीजें चोरी हो गयी थीं । लेखक को सम्मेलन में ये सारे अनुभव हुए ।